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अतिथि देवो भव:

अतिथि देवो भव: WHO WILL HELP ME TO PUBLISH delhi EXP.  I HAVE WRITTEN IN NOTE BOOK BUT DUE TO SLOW NET I CANT PUBLISH,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ............PLEASE HELP ME FRIENDS......................

गब्बर सिंह का चरित्र चित्रण

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1. सादा जीवन, उच्च विचार: उसके जीने का ढंग बड़ा सरल था. पुराने और मैले कपड़े, बढ़ी हुई दाढ़ी, महीनों से जंग खाते दांत और पहाड़ों पर खानाबदोश जीवन. जैसे मध्यकालीन भारत का फकीर हो. जीवन में अपने लक्ष्य की ओर इतना समर्पित कि ऐशो-आराम और विलासिता के लिए एक पल की भी फुर्सत नहीं. और विचारों में उत्कृष्टता के क्या कहने! 'जो डर गया, सो मर गया' जैसे संवादों से उसने जीवन की क्षणभंगुरता पर प्रकाश डाला था. २. दयालु प्रवृत्ति: ठाकुर ने उसे अपने हाथों से पकड़ा था. इसलिए उसने ठाकुर के सिर्फ हाथों को सज़ा दी. अगर वो चाहता तो गर्दन भी काट सकता था. पर उसके ममतापूर्ण और करुणामय ह्रदय ने उसे ऐसा करने से रोक दिया. 3. नृत्य-संगीत का शौकीन: 'महबूबा ओये महबूबा' गीत के समय उसके कलाकार ह्रदय का परिचय मिलता है. अन्य डाकुओं की तरह उसका ह्रदय शुष्क नहीं था. वह जीवन में नृत्य-संगीत एवंकला के महत्त्व को समझता था. बसन्ती को पकड़ने के बाद उसके मन का नृत्यप्रेमी फिर से जाग उठा था. उसने बसन्ती के अन्दर छुपी नर्तकी को एक पल में पहचान लिया था. गौरतलब यह कि कला के प्रति अपने प्रेम को अभिव्यक्त

प्रीत........

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येते जेव्हा तुझी आठवण मी माझा राहत नाही होतो तुझा आणि विसरुनी जातो सर्व चंद्र सूर्य येतात जातात पण तू असतेस सतत माझ्याबरोबर मला विश्वास आहे तुलाही माझी आठवण येते पण या जगात प्रेमाला काही किमत नाही जखडूनि ठेवतात बंधनात जे आपण कधीच तोडू शकत नाही आपल्या भावना मनात ठेवुनी शेवटी जातो मातीत मिसळूनी